Saturday 31 October 2015

मै हुं जो जॉन एलिया हुं जनाब मेरा बेहद लिहाज कीजिये

जॉन एलिया को समझना आसान नहीं है , भले ही पहली नजर में उनके किसी भी शेर में आपको गहराई नजर नहीं आए लेकिन ,उस शायरों के शायर के किसी भी लफ्ज को समझने के लिए , उस शायर को समझना , उसके वक्त को समझना बहुत जरुरी है।  गुफ्तगू को शायरी में बदलना , फलसफे के नए आयाम और कारागारी की जगह पे सादागरी।  जॉन एलिया की शायरी में अकेलापन  तो है ही लेकिन मेरे हिसाब से अंदाज सूफियाना है।

मै हुं  जो जॉन एलिया हुं  जनाब
मेरा  बेहद लिहाज कीजिये


शर्म, दहशत, झिझक, परेशानी..
नाज़ से काम क्यों नहीं लेतीं 
आप.. वो.. जी.. मगर.. वो सब क्या है
तुम मेरा नाम क्यों नहीं लेतीं

क्या सितम है की तेरी सूरत 
गौर करने पे याद आती है 

मै  भी बहुत अजीब हुं  इतना अजीब हुं  की बस
खुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं

मुझको आदत है रूठ जाने की
आप मुझे मना लिया करो



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