Thursday 20 August 2015

अब वो मकान घर हो गया है

चार दीवारे थी ,
छत ,
सोने के लिए बिस्तर चादर
वो रात  दूर किसी देश की
समस्या सुलझता
साथी दिन में अपना
मकसद ले किसी
और के मकसद को पूरा करती
अब उस उजाड़ घर में
एक जोड़े ने घोसला
बना लिया है
अब वो मकान घर हो गया है 

Friday 14 August 2015

हां है आजादी

हां है आजादी
बंद कमरे में रह के
अपने विचार व्यक्त करने की
बुद्धिजीवी होने की
आजादी सिर्फ उसके
झंडे उठाने की
जिसने इस बार लाल किले पे
झंडा फहराया
आजादी वही पढने की
जो समझाते है की
आजादी क्या  होती है
और आगाह करते है की
समझने के बाद रट लो
लेकिन उपयोग ना करो
क्योकि वो पाठ क्रान्ति का
आजादी वाली सिलेबस में नहीं है
आजादी जन-गण -मन गाने की
और " सारे जहां से अच्छा " पे
बहस करने की
सिर्फ इकबाल पे बहस की आजादी
आजादी लिखने की फिल्मे बनाने की
लेकिन सत्य पे आधारित नहीं
भाट -चारणो वाली कहानी
ताकि लिखने वाले की
आजादी बरकरार रहे
और भविष्य में
राज्य सभा की सीट मिल जाए



Tuesday 11 August 2015

फ़िराक़ साहब के कुछ शेर : मेरे पसंदीदा

मै ये कहता हुं कि अफ़लाक से आगे हूँ बहुत । 
इश्क कहता है अभी दर्दे दिल उट्ठा ही नही ।।

क्या अजब तेरे चंद तर -दामन । 
सबके दागे-गुनाह धो जाए ।।

जिंदगी को वफ़ा की राहो में । 
मौत खुद रौशनी दिखाती थी।।

Sunday 9 August 2015

गरीबी का अब ये इनाम सा लगता है

गरीबी का अब ये इनाम सा लगता है ,
अन्नदाता का तमगा भी इल्जाम सा लगता है।

खेतो के मुंडेरों पे वो बैठा हुआ गिद्ध ,
संसद में बैठा हुआ हुक्काम सा लगता है।

जो खोलता परते है अंधेरो की दिन में ,
अदीबों की गली में बदनाम सा लगता है।

लटकी हुई वो लाश कह गई ये कहानी ,
मोहब्बत का सफर भी नाकाम सा लगता है।

Saturday 8 August 2015

रिक्शा वाला

उसके पैर पैडल के लिए थे
आँखे सडको के लिए
शरीर धुप की गिरफ़्त में
ज़ेब बैठने वालो की रहम पर
रिक्शा बैक वालो के
अपना था तो बस
वो हौसला
की शाम होते घर जाना है



Monday 3 August 2015

कीमत क्या है यहाँ गवाही की

कीमत क्या है यहाँ गवाही की
जैसी आज्ञा हो जिल्ले - ईलाही  की

अभी नफ़रत बहुत है दिलो में
अभी जरुरत नहीं गंगा सफाई की

तुमने खरीदा वो कुछ और होगा
इस्मत बाकि है अभी रौशनाई की

मै कब से सच बोल रहा हु
अब सजा तो दे दो बेगुनाही की

भूख , भय , झूठ ,फरेब
बैनर लगवादें तुम्हारे खुदाई की  

Saturday 1 August 2015

मेरी थकन के वास्ते कोई गीत गुनगुनाओ

मेरी थकन के वास्ते कोई गीत गुनगुनाओ
शाम-ए-सुखन के वास्ते कोई गीत गुनगुनाओ

जहा ग़म मिटे है तेरे हम आशिको के बीच
उस अंजुमन के वास्ते कोई गीत गुनगुनाओ

दो चार दिन में साकी हम भी फ़ना तो होंगे
बस इस घुटन के वास्ते कोई गीत गुनगुनाओ

कुछ कर्ज है ये ऐसा मर कर अदा ना होगा
एहले - वतन के वास्ते कोई गीत गुनगुनाओ 

मौलवी साहब

पहले घर की दालान से शिव मंदिर दिखता था आहिस्ता आहिस्ता साल दर साल रंग बिरंगे पत्थरों ने घेर लिया मेरी आँख और शिव मंदिर के बिच के फासले क...