Sunday 29 October 2017

मिलने की घड़ी जब आ जाती है

मिलने  की घड़ी जब आ जाती है 
कुछ खुशबु सा महका जाती है 

वो फिर भंवरा बन कर उड़ता है 
तू जिसकी गली मंडरा जाती है 

हाय ! कयामत क्यों ना बरसे 
तू थोड़ा जो शरमा जाती है 

वो तो बस एक शीशा है 
तू खुद से क्यों घबरा जाती है 

उफ्फ ! तेरे घुंगराले बाल 
उसे देख देख बदरा छाती है 




मौलवी साहब

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