Wednesday 23 July 2014

इक मेरी थी कहानी , इक तेरी थी कहानी

इक मेरी थी कहानी , इक तेरी थी कहानी

घर वाले सो रहे है ,
वो अब भी जागती है ,
चादर से ढक के चेहरा,
कुछ गुनगुना रही है
वो सो गई है ऍसा
दुनिया समझ रही है

इक मेरी थी कहानी , इक तेरी थी कहानी

वो ध्यान ही ना देगी ,
क्या कह रही है दुनिया,
अपनी  हथेलियो पर नाम लिख रही है
इस भीड मे भी जाने
क्यो गुमसुम सी दिख रही है ,
किसी अनकहे की खातीर ,
परेशान हो रही है

इक मेरी थी कहानी , इक तेरी थी कहानी

वो छत पे आ गई है ,
सुरज बना बहाना
आंखे तरस रही है
दिखता है छट पटाना
गलीयो की मोड तक
आंखे बिछी हुई है

इक मेरी थी कहानी , इक तेरी थी कहानी

दादी की बात को अब
ध्यान भी ना देगी ,
दोस्तो के संग भी
खेला नही करेगी
बस आईने के आगे
दिन भर संवर रही है

इक मेरी थी कहानी , इक तेरी थी कहानी

- Saurav Kumar Sinha

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