Saturday 13 May 2017

डर तो है

डर तो है
दरवाजे के पीछे से आती हुई आहट का
डर उस सवाल का है
जब सामना होगा।
आहट जब शक्ल लेगी
उस शख्स का
जो करीब है
मुझे जानना चाहता है
और वो उस सवाल के लिए ही
आहट से निकल कर
शक्ल अख्तियार कर रहा है।
दरवाजा अब तक दरवाजा नहीं था
एक लक्ष्मण रेखा थी
जो खुद मैंने राम बन
मिटा डाली , मर्यादा हरण कर डाली।
मुझे डर है उन आँखों में आंखे जब होंगी
तो क्या सवाल केवल सवाल का होगा
या मेरे उसके दरम्यान मौजूद
हर उस सफ़ेद झूठ का
जो शायद अब
नए वक्त में
एक सवाल बन जाएगा।
मै जानता हु अंततः क्या होगा
अपने जवाबों को रिवाजों का कम्बल ओढ़ा कर
सुला दूंगा चुपचाप
वो शक्ल फिर आहाट  बन जाएगी
मै फिर राम
और खींच जाएगी फिर एक लक्ष्मण रेखा।



मौलवी साहब

पहले घर की दालान से शिव मंदिर दिखता था आहिस्ता आहिस्ता साल दर साल रंग बिरंगे पत्थरों ने घेर लिया मेरी आँख और शिव मंदिर के बिच के फासले क...