Wednesday 30 September 2015

शान्ति कोई प्रस्ताव नहीं जिस पे वाद विवाद हो

शान्ति कोई प्रस्ताव नहीं जिस पे वाद विवाद हो , शान्ति एक आवश्यकता है।  दादरी में एक मंदिर से ये घोषणा हुई की फलां आदमी ने गो मांस खाया है तो भीड़ ने उसकी ह्त्या कर दी।  मृत की बेटी ने कहा की अगर मांस गो मांस ना हुआ तो क्या लोग उसके अब्बा को वापस ला देंगे ?  क्या इसी मन्दिर की बात हम १९९१  से कर रहे है या इसी प्रकार के मन्दिर की?

Monday 21 September 2015

१९- २० सितम्बर 2015 दिल्ली हिंदी अकादमी का कवि सम्मलेन

कल दिल्ली हिन्दी अकादमी के तत्वाधान में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत करने का मौक़ा मिला।  सच कहु तो जिंदगी की कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से ये एक था।  इसमे मैंने कविता पाठ  तो नहीं की लेकिन जिस मंच पे मंगलेश डबराल , नरेश सक्सेना और लीलाधर मंडलोई जैसे लोग हो वो किसी भी हिंदी प्रेमी के लिए एक अविस्मरणीय पल है।   जिन कवियो को आज तक पढ़ा प्रेरणा ली और बहुत कुछ सीखा , उनको इतने पास से सुनाने और महसूस करने का मौक़ा मिला , लगा जैसे कविता के देश में मै एक अथक यात्रा कर रहा हु।  नरेश सक्सेना जी को सुनना और उनका काव्य पाठ अपने में एक दैविक अनुभूति है। उन्होंने "चम्बल" वाली कविता का पाठ किया और हाल में बैठे किसी भी शख्स की आँखे  सुखी ना रह सकी।  १८ भाषाओ के कवियों को सुनना और उनके अनुवाद को समझने के प्रयास के बाद इस बात पे गर्व है की हिंदी बड़ी बहन के नाते अपना कर्तव्य बखूबी निभा रही है।


Saturday 5 September 2015

मेरे सुर में गाओ, एक सुर में , एक लय में

मेरे सुर में गाओ
एक सुर में
एक लय में
सुर ही काफी नहीं
शब्द भी मेरे हो
अक्षरसः वही जो
मैंने कहा कल
या
जो कहूँगा
पता है मुझे
भाव मेरे और तुम्हारे
कभी एक नहीं हो सकते
गाते गाते भाव
तुम्हे वो लिखने और
वही लयबद्ध करने पे
मजबूर करेंगे
जिससे मुझे नफ़रत है
और मेरे चाहने वालो को भी
अंततः मुझे तुम्हारे भावो को
शुन्य करना होगा
चाहे धर्मानुसार,
या दर्शनानुसार
इसलिए
मेरे सुर में गाओ
एक सुर में
एक लय में 

हमको मालूम है देश की हकीकत लेकिन

जब सरकारी योजनाओ ने देश के गाव देहात का दॉरा किया तो फाईलो मे छिपी सॅंपल गरीबी का कद ऑर नाक-नक्श बहुत भयावाह लगा l जब ये खबर संसद भवन पहुंची तो सभी ने एक स्वर मे कहा
"हमको मालूम है देश की हकीकत लेकिन

'कुछ' को खुश रखने को ग़ालिब ये माहॉल अच्छा है।"

Thursday 3 September 2015

गा़लिब ये खयाल अच्छा हॅ

ना उनका मज़हब
उस इमारत को बनाने मे था,
ना हमारा धर्म उसको गिराने मे
ये तो समुद्र-मंथन हॅ ,
विष तो निकलेगा ही ..
सत्य को प्रमाण की आवश्यकता नही पडती
बाकी तुम प्रयासरत रहो ..
दिल को खुश रखने को
गा़लिब ये खयाल अच्छा हॅ

मौलवी साहब

पहले घर की दालान से शिव मंदिर दिखता था आहिस्ता आहिस्ता साल दर साल रंग बिरंगे पत्थरों ने घेर लिया मेरी आँख और शिव मंदिर के बिच के फासले क...