Friday 30 May 2014

अपनी तस्वीर रोज बनाता है

अपनी तस्वीर रोज बनाता है
जाने क्यो आईने से घबराता है
ईतने मश्गूल है खुद मे ही हम
किसी का कौन अब दिल दुखा्ता है
ये सीखना मुनासिब नही है बच्चो
चांद अकेला है फिर भी मुस्कुराता है
ये मोहब्बत नही हॅ बंदगी के आंसु है
ईस कतरे मे समंदर डुब जाता है

Thursday 29 May 2014

ये आज जो पास आई बहुत है


ये आज जो पास आई बहुत है
ये दुनिया हमने ठुकराई बहुत है
यही नुक्सान है शीशा होने का ,
कुछ हुआ तो आंच आई बहुत है
आइना वक़्त को दिखाने के लिए
कलम में कुछ रोशनाई बहुत है
अब किसको सुनाए वो ग़ज़लें ,
जो उनको सुनाई बहुत है
Saurav Kumar Sinha
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Monday 12 May 2014

सब ताने है तीर कमान गंगा तेरे घाट पे

सब ताने है तीर कमान गंगा तेरे घाट पे
सिकुड गया है हिन्दुस्तान  गंगा तेरे घाट पे

काशी को जीता जिसने भी पाप सभी धुल जाएंगे
अंधो की है सजी दुकान गंगा तेरे घाट पे

कोई टोपी बांट रहा है , कोई टोपी फाड  रहा है
सबकी अपनी सजी दुकान गंगा तेरे घाट पे

बाबा तेरी पुजा को देश भर से आए है
चंद दिनो के कुछ मेहमान गंगा तेरे घाट पे

देश का छोडो , अब काशी मे आओ मिल के शामिल हो
देश का करने पिंडा दान गंगा तेरे घाट पे

नारो वादो और नफरत से अब भी पुरी अछुती है
बिसमिल्लाह की मिठी तान गंगा तेरे घाट पे



मौलवी साहब

पहले घर की दालान से शिव मंदिर दिखता था आहिस्ता आहिस्ता साल दर साल रंग बिरंगे पत्थरों ने घेर लिया मेरी आँख और शिव मंदिर के बिच के फासले क...