Wednesday 30 March 2016

अगर आज कबीर और भगत सिंह होते तो कहां होते ?

अगर आज कबीर और भगत सिंह होते तो कहां होते ?

सबसे पहले ये सवाल कि क्या एक आम आदमी जिसकी जानकारी सिमित है दोनों के बारे में या कोई और आदमी भी , इन दोनों महापुरुषों के बारे में लिखित ( चर्चित ) इतिहास से पृथक राय रख सकता है ? क्या दोनों जो अपने समय के बाद हमेशा ही किताबो में कैद रहे है और लिखने और बोलने वाले उनके उसी रूप की चर्चा करते रहे है जिनकी आज्ञा निजाम देता था या है , से अलग कुछ कह या बोल सकते है ? क्या इसकी अनुमति सभ्य समाज या समकालीन सत्ताधीश देंगे ? जवाब मिलेगा ना।  स्वतंत्र भारत में दोनों का इस्तेमाल अपनी अपनी सुविधा से सभी करते रहे है और इस चर्चा से बचते भी रहे है और घबराते भी।

मेरे हिसाब से या तो दोनों जेल में होते या उनपे राजद्रोह ( जो आरोप लगाते उनके लिए देशद्रोह ) का मुकदमा चल रहा होता जो अंतत: अंतरिम जमानत मिलने पे ख़त्म होता।  मै किसी की किसी से भी तुलना नहीं कर रहा हू , और ना ही तुलना होनी चाहिए। आखिरकार दोनों की लड़ाई इसी तर्ज पर थी कि हम  स्वयं को पहचाने और सबकी सोच और पूरा व्यक्तित्व किसी भी दूसरे से जुदा और आजाद होता है और इसका पूरा सम्मान करना  चाहिए।

कबीर के विषय में मेरी जानकारी उतनी हीं है जितनी मैने दसवीं के पहले अपने पाठ्य क्रम में पढ़ी थी , फिर भी अपनी समझ से इतना तो कह सकता हु कि कबीर आज के अहद में होते तो उनका वैसा ही विरोध होता और वो भी मुख्य विचारधाराओं द्वारा जैसा उनके अहद में हुआ था। और उनकी एक ही पहचान के चारो और वाद विवाद होता की वो एक जुलाहे थे।  कुछ कहते कि कबीर के दोहे जेसे

"जो मोहि जाने, ताहि मैं जानौं
लोक- वेद का कहा ने मानौं।।'

हिंदू भावना को आहात कर रहे है और उनकी पोथीयो पे रोक लगा देनी चाहिए और देशभर में उनका बहिष्कार होना चाहिए।  

वेद कुरान सब झूठ है, हमने इसमें पोल देखा।अनुभव की बात कहे कबीरा, घट का परदा खोल देखा।।'

और ऊपर वाले दोहे को पढ़ने के बाद तो देश में ऐसी एकता आती और दोनों धर्म के ठेकेदार साथ में मिल के कबीर का विरोध करते और आने वाले चुनाव में कौमी एकता सबसे बड़ा मुद्दा होता और कदाचित उसे ट्वीट करने वाले प्रत्याशी ( या भगवान द्वारा भेजे हुए दूत ) जीत भी जाते।

कबीर एकेश्वरवाद के समर्थक थे लेकिन इस्लाम के नहीं , भक्ति में उनकी श्रद्धा थी लेकिन मूर्ति पूजा में नहीं , फिर कबीर " हिंदू " और "मुसलमान " दोनों की एकता की बात कैसे कर सकते है। बरहाल हो सकता था कि कबीर को वामपंथी करार दे के लोग आगे बढ़ जाते और वामपंथी कामरेड कबीर को लाल सलाम दे रहे होते।  लेकिन कबीर ? कबीर तो लिख रहे होते तथाकथित धर्म के ठेकेदारो पे , मजहब के नाम पे भ्रान्ति फैलाने वाले पत्रकारों पे , अलगाववाद के हर उस स्तंभ को चुनौती दे रहे होते जिसकी मंशा इंसान को इंसान से जुदा करना है।  हां ये भी मानता हु कि चूकिं कबीर ने संगठित सैन्य परंपरा नहीं देख़ी थी और नव उपनिवेशवाद से उनका पाला नहीं पड़ा था सो उनका नजरिया इनके प्रति क्या होता मै इसपे कुछ कहना नहीं चाहता।

अब बात शहीदे आज़म भगत सिंह की।  इसमें दो राय नहीं है कि भगत सिंह आज होते तो अन्याय ,अराजकता और आडम्बरो के खिलाफ देश भर में  चल रहे असंगठित आंदोलनों को एक करने का प्रयास कर रहे होते और विरोध का सबसे प्रखर स्वर होते।  भगत सिंह को सभी ने प्रसंशा का विषय बना दिया है लेकिन जब बात आती है उनके ख्वाब की ताबीर की , सभी बगले झाकने लगते है , चाहे इतिहास में अंग्रेज या स्वतंत्र भारत में कोई भी राजनितिक पार्टी। भगत सिंह केवल एक क्रांतिकारी नहीं थे , उनका विरोध केवल अंग्रेजो से नहीं था , उनका समर्थन केवल भारत के शोषितों से नहीं था , सो हमें शहीदे आजम को स्वतंत्रता संग्राम की चार दिवारी से निकाल के देखना होगा। मुझे मार्टिन नीमोलर का वो प्रसिद्ध कथन याद आ गया 


पहले वो आए साम्यवादियों के लिए
और मैं चुप रहा क्योंकि मैं साम्यवादी नहीं था
फिर वो आए मजदूर संघियों के लिए
और मैं चुप रहा क्योंकि मैं मजदूर संघी नहीं था
फिर वो यहूदियों के लिए आए
और मैं चुप रहा क्योंकि मैं यहूदी नहीं था
फिर वो आए मेरे लिए
और तब तक बोलने के लिए कोई बचा ही नहीं था


समस्या ये होती कि भगत सिंह केवल मजदूरों और शोषितों को एक हो जाने को कहते, ना तो किसी और संगठन  का समर्थन करते ना उन्हें एक होने के लिए कहते क्योकि ये सर्वविदित है कि अन्य वर्ग को पता है की शोषण से कैसे बचना है और कब दरबारों की हां में हां मिलाना है।  और इसका नतीजा ये होता कि भगत सिंह पे अभी कई मुकदमे चल रहे होते और उनके खिलाफ ट्विटर पे ट्रेंड चल रहा होता। 








Saturday 26 March 2016

A Trip to Vrindavan and Mathura in Holi : Welcome to Colorful India

If you wish to see colorful India , Different from any other form of the present civilization of the world , you should visit Vrindavan and Mathura in the festival of Holi. Its not about color,celebrations and variety of food that the location possess but a sense of oneness regardless of your caste, color and creed that floats in the air . 

How I reached Mathura :

Mathura is well connected to cities like Agra and Delhi . I took Shatabdi Express that leaves Delhi around 6 AM in the morning and reaches Mathura at 7.20 AM , Just 80 minutes of journey with refreshing tea inside the train . If your ticket is till Mathura, don't wait for ant breakfast in the shatabdi as your ticket doesn't include any. We reached Mathura at sharp 7.20 AM and then we continued our journey to Vrindavan . 

( It is stated in the Garga Samhita Mathura Khanda 25.27"Simply by walking in Vrindavan one reaches the benefits of a great pilgrimage at every step." )

You can book private auto to Vrindavan that will cost you around Rupees 120 - 150 and Rs. 15 per passenger if you are sharing the auto . This auto will take you to main Mathura-Vrindavan road and drop you near Banke Bihari Temple path  ( Vrindavan is a small place , not walkable though ).

We preferred to stay @ Chatikara-Vrindavan Road , ahead of Prem Mandir if you are coming from Vrindavan as at heavy traffic also you can walk , cross Prem Mandir and then catch an auto till the hotel. 

Stay at Vrindavan and Holi !!!

Our hotel was Shree Krishna Ashram that we booked via Goibibo and it was an awesome hotel with huge rooms and it was clean as it is expected in Vrindavan . If you are traveling on the day of Holi, carry lot of food with you as complete vrindavan is almost closed on the day , even hotel staffs were on holidays and we found it difficult even to get few snacks from general stores. 

Go on foot , wear light dress and also keep a google so that it will save you from colors entering your eyes. Celebrations start at 8 am in the morning and goes till 2- 3 PM in the afternoon, that gives you time to go back to hotel and refresh your self for evening events in the temples. 

What all you can  visit in Vrindavan 

Yamuna darshan at the Keshi Ghat.
Sri Gopesvara Mahadeva
Vamsi Vata
Sri Sri Radha Govindaji Mandir
 Sri Sri Radha Gopinath Mandir.
Sri Sri Radha Gokulananda Mandir
Sri Sri Radha Madan Mohan Mandir
Sri Chaitanya Mahaprabhus Imlitala
Sri Sri Radha Damodara and Radha Syamasundara Mandir
Sri Sri Radha Mohan Mandir.
Iskon Temple
Shri Shri Banke Bihari Temple
Prem Mandir
Katyaini Peeth 


Precautions 

  1. Don't indulge in any debate , discussions
  2. Try to avoid Bhang and alcohol
  3. Don't argue with so called guides and try to explore yourself , its a small place
  4. Take guidance from hotel authority . 
  5. Get ready to walk a lot . 










Friday 11 March 2016

तुम मेरे खिलाफ बोल सकते हो

तुम मेरे खिलाफ बोल सकते हो
क्योंकि ,
मै सुनूंगा भी और ,
तुम्हारे साथ उस आवाज में
अपनी आवाज भी जोड़ दूंगा।
मेरे पास कोई भीड़ नहीं है
कोई झंडा  नहीं है
कोई नारा नहीं है
कोई इतिहास नहीं है
सिर्फ मैं हुँ ,
और मेरे साथ है
सुनने की वो ताकत
जो तुम्हारी मंशा पूरी करेगा
अन्यथा मेरी आवाज में
तुम्हारी चीख खो जाएगी
और तुम्हारा मेरे खिलाफ होना
बदल जाएगा
एक दूसरे के खिलाफ होने में।
तुम भरसक प्रयास करना \
अपनी बात मनवाने का
मै  तैयार हुँ समझने के लिए
कि तुम्हारे शब्दों के बीच कौन है
जो मेरे शब्दों के बीच बैठे उस
निर्णायक मंडली को
वो नहीं सोचने दे रहा
जो तुम सोच रहे हो।
मै साध लूंगा मौन
तुम बोलते रहना
चीखते रहना लेकिन
बोलना जरूर।
शब्द और सत्य भले ही साथ ना चल पाए
लेकिन
कुछ फासला जरूर कम होगा
मेरे और तुम्हारे अर्धसत्य का


Sunday 6 March 2016

नई कविता के यायावर सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' को उनके जन्मदिवस पे सादर नमन !!

नई कविता के यायावर सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' को उनके जन्मदिवस पे सादर नमन !! 

भाषा अपने समय में कैसे पैनी और धारदार होती है इसका मेरी नजर में सर्वश्रेष्ठ उदाहरण अज्ञेय की ये कविता है :-


आप चीखते हैं चिल्लाते हैं
आप बात फिर-फिर दुहराते हैं 
मैं इशारा कर के मुस्करा देता हूँ
अपना-अपना तरीका है।
न-न- आप नाहक बौखलाते हैं
मैं तो अपनी कह भी चुका -
तो अब विदा लेता हूँ।


या 

रोज सवेरे मैं थोड़ा अतीत में जी लेता हूँ ...
क्यूंकि रोज शाम को मैं थोड़ा सा भविष्य में मर जाता हूँ


मौलवी साहब

पहले घर की दालान से शिव मंदिर दिखता था आहिस्ता आहिस्ता साल दर साल रंग बिरंगे पत्थरों ने घेर लिया मेरी आँख और शिव मंदिर के बिच के फासले क...