Monday 20 August 2018

टाइम पास नोट्स

उस रात कोई एक शुक्राणु टकरा गया था प्रकृति के नियमानुसार मादा के किसी अंडे से और जन्म मरण की प्रक्रिया शुरू हो गई , नियति लिख दी गई , भाग्य मढ़  दिया गया, भविष्य गुंथा जाने लगा।  लेकिन किसका? प्रकृति और पुरुष दोनों नहीं जानते थे कि वो "हादसा" ( आप उसे घटना भी कह  सकते है ) जन्म देगा "मै "  को जो २०१८ में ये लेख रहा होऊंगा। नियति सिद्ध नहीं होती लेकिन आज "मै " एक सत्य है और उसके अलावा सब एक घटना है।  होने की प्रक्रिया के साथ होता गया हादसा।  हर घटना को हम नाम देते गए और जुड़ते गए घटनाओं को , दूर होते गए एक मात्र सत्य "मै " से।  तुम भी एक घटना हो जैसे  एक घटना है शुक्राणुओं का टकराना और  बना देना किसी को माता किसी को पिता और तुम्हे मेरा इश्क।  सत्य तुम्हारा "मै " है और मेरा "मै " तो बस बातचीत हो दोनों सत्य के बीच।  सत्य को सत्य से जोड़ो तो सत्य ही बनता है , थोड़ा भी झूट हो तो सत्य सत्य नहीं रहता , एक हादसा हो जाता है , एक घटना हो जाती है।  मेरी समझ से सत्य को सत्य से जोड़ना ही प्रेम है , इबादत है पूजा  है।  किसी का शेर है

जिस्म से रूह तक जाए तो हकीकत है इश्क,
और रूह से रूह तक जाए तो इबादत है इश्क़।

यहां जिस्म एक माध्यम है लेकिन अगर रूह तक जाए तभी वी सत्य है अथवा घटना।  तुम समझ रही हो ना ? घटना से अपने आप को मत जोड़ो सत्य ही असली नियति है उसकी खोज जारी रखो।

Monday 13 August 2018

तुमसे डर क्यों लगता है ?

तुमसे डर क्यों लगता है ? ये सवाल तुमसे नहीं है, खुद से है।  शायद खुद से इसलिए क्योकि इसका जवाब तुम तो नहीं दोगी इसलिए दारोमदार खुद के कन्धों पे देना होगा।  मौन हर वक़्त तुम्हारा जवाब नहीं होता लेकिन तुम वो भी तो नहीं कहती जो कहना चाहती हो इसलिए खुद से साक्षात्कार ही सही लगता है। तुमसे डर खोने का डर नहीं है , तुमसे इश्क़ पाने के लिए नहीं है।  तुमसे दोस्ती एक वजह नहीं है ना आदत है , ना जूनून भी , बस है , क्यों है कारण क्या है पता नहीं ना मैंने खोजा है ना जरुरत लगती है । तुम्हारी आँखों में भी पाने और खोने की उम्मीद नहीं देखि मैंने।  सुकून लगता है इस माहौल में तुम्हारे साथ बैठना , चाय पीना और ये जानते हुए भी की बिछड़ना नियति तो है लेकिन हमारे रिश्ते में अब इसका कोई महत्व नहीं है। 

लेकिन फिर भी डर लगता है।  डर उन आंखों से नहीं है , उन चाहतों से नहीं है , उन लम्हों से नहीं है जिन्होंने सदियों का दुःख तुम्हारे दामन में बेवक्त लगा दिया। डर तुम्हारे अनजाने मौन का है। तहज़ीब हाफ़ी का एक शेर

मैं उस को हर रोज़ बस यही एक झूट सुनने को फ़ोन करता
सुनो यहाँ कोई मसअला है तुम्हारी आवाज़ कट रही है। 

ये शेर लगभग उसी दायरे की और सूचित करता है जो मेरे और तुम्हारे रिश्ते के बीच है।  होनी भी चाहिए , रिश्तों में दुरी सही होती है , मै ही पागल हूँ जो दोस्ती, यारी , आती जाती मोहब्बतों के दरम्यान दुरी मिटाने की कोशिश करता है।  खुसरो कहते थे
साजन हम तुम एक हैं और कहन सुनन को दो 
मन से मन को तोलिये सो दो मन कभऊ ना हो

मेरे लिए हर रिश्ता "दो मन कभऊ  ना हो" है।  मुझे फर्क नहीं पड़ता निभाने वाला क्या सोचता है , मै तो खुसरो का मुरीद हु, ना मानना ज्यादती होगी।  डर इसी बात का लगता है , मन कहीं दो तो नहीं है।  

फुटकर नोट्स 

मौलवी साहब

पहले घर की दालान से शिव मंदिर दिखता था आहिस्ता आहिस्ता साल दर साल रंग बिरंगे पत्थरों ने घेर लिया मेरी आँख और शिव मंदिर के बिच के फासले क...