Sunday 24 June 2018

बोलती रहो.......


बोलती रहो.......
क्यों ?
तुम बोलती हो तो
ध्यान तुम्हारा कहीं और होता है
अच्छा , इस से तुम्हे क्या ?
मेरे ध्यान से तुम्हारा ध्यान
टकराता नहीं है
मेरे मार्ग में बाधक नहीं बनता
किस मार्ग में ?
पता नहीं
मेरे पैरों को सिरहाने बना
जब तुम आकाश को निहारती हुई
अपनी यादों में से शब्द निकालती  हो
तो ऐसा लगता है जैसे
तुम्हारी आँखों के रास्ते एक मार्ग है
जो सुदूर आकाशगंगा में
मेरे लिए अभी , बस अभी बना है
वही मार्ग
वहा अकेले जाओगे ?
हाँ

मौलवी साहब

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