Sunday 6 March 2016

नई कविता के यायावर सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' को उनके जन्मदिवस पे सादर नमन !!

नई कविता के यायावर सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' को उनके जन्मदिवस पे सादर नमन !! 

भाषा अपने समय में कैसे पैनी और धारदार होती है इसका मेरी नजर में सर्वश्रेष्ठ उदाहरण अज्ञेय की ये कविता है :-


आप चीखते हैं चिल्लाते हैं
आप बात फिर-फिर दुहराते हैं 
मैं इशारा कर के मुस्करा देता हूँ
अपना-अपना तरीका है।
न-न- आप नाहक बौखलाते हैं
मैं तो अपनी कह भी चुका -
तो अब विदा लेता हूँ।


या 

रोज सवेरे मैं थोड़ा अतीत में जी लेता हूँ ...
क्यूंकि रोज शाम को मैं थोड़ा सा भविष्य में मर जाता हूँ


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