Monday 27 July 2015

बागडोगरा से लौटते हुए

मेरी आँखों पे चश्मा
इस लिए नहीं था ,
की
मै नज़र नहीं मिला पाउँगा
इस लिए था की नजर मिलाने पे
तुम
शर्मिन्दा ना हो जाओ
और अगर झुक नहीं पाती नजर
तो फिर टकराते
दो कभी ना मिलाने वाले किनारे
और मुझे फिर
चश्मा लगाना पड़ता
ताकि कोई हार ना जाए

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