Sunday 10 April 2016

बटेसर की मेहरारू

लोकतंत्र के मंदिर में
इसके पहले कि
अनैतिक पटाखो से आग लगे
या जूते जज़्बातों और जबानों से
आगे का सफर अनायास ही तय करने लगे
हमें कुछ करना होगा।
बटेसर की मेहरारू
कभी मेरा मुंह ताके
कभी झोपड़ी में कल ही टंगे
उस रंग बिरंगी झंडे को।  
मुझे लगा शायद मैने
तत्कालीन राजनैतिक समस्या को
 समझाने में कोई कसर छोड़ दी।
फिर खोजने लगा किताबो में
स्वयम्भू राजनैतिक दिग्गजों को
" कोट " करने के लिए
ताकि बटेसर की मेहरारू ताके नहीं
वर्तमान घटनाक्रम में झांके
समझे , बदले क्रांति लाए।
" यहां सुखा हर साल आता है
और वर्तमान राजनैतिक संकट
पे गोष्ठी पांच साल बाद,
मेघराज भी वार्षिक दर्शन देते है"
ये एक समाजसेवक ने बताया।
और तुम ? मैने पुछा।
कहने लगा त्रैमासिक
पत्रिका के शोध के लिए
अर्धवार्षिक चक्कर लगाता हु।
फिर बटेसर की मेहरारू का क्या
"वो ताकते ताकते
मोतियाबिंद का शिकार हो जाएगी।
कुछ दिन बाद उसकी मौत
एक आंकडे में तब्दील  हो जाएगी
गणित' के दो अनंत के बीच
कोई  भी एक झूलता हुआ आंकड़ा
पांच साल में होने वाली
गोष्ठी के लिए एक आंकड़ा
तुम्हारे "कोट " करने के लिए
एक आंकड़ा
और मै ?





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