Friday 1 April 2016

मेरे देश में बहस

भैया जी जोशी का राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान के विषय में दिया गया विवादित बयान एक मंथन का विषय है। मंथन का इसलिए क्योकि अगर सड़कों पे इसका विरोध हुआ तो बड़ी आसानी से सवयंसेवक संघ के समर्थक ( अंध समर्थक भी ) पुरे विषय को उस भीड़ की और मोड़ देंगे और फिर पूरा देश इस विषय पे बहस करने लगेगा कि वो भीड़ राष्ट्रवादियो की थी या राजद्रोहियो की। हालांकि ये बयान मंथन के लिए नहीं दिया गया है किंतु इसका रुख एक स्वस्थ वाद विवाद की और मोड़ना होगा। ये दीगर बात है कि सवयंसेवक संघ मंच के अलावा ये बयान अगर कही और से आता तो अबतक धर्मध्वज रक्षक तिरंगा ले कर उस मंच के आगे प्रदर्शन कर रहे होते।

इसी प्रवृति को बदलना है। क्या सारे फैसले अदालत में लिए जाएंगे ? कहां जाए अगर हम आपके साथ नहीं है तो ? कहां बोले अगर अपने देस ( देश में नहीं ) में नहीं बोलेंगे तो ? चाहे हमें पसंद हो या ना हो लेकिन एक सभ्य समाज की रचना के लिए एक दूसरे को सुनना होगा समझना होगा , लोकतंत्र को भीड़तंत्र में बदलने से रोकना होगा। ये कौन सी मानसिकता है जो हमें एक दूसरे से बात करने के लिए प्रेरित नहीं करती।

ये इसलिए क्योकि अभी तो कई मुद्दों पे विचार करना होगा , ये एक निरंतर गतिशील प्रक्रिया है। मुझे पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी का वो बयान याद आ रहा है जिसमे उन्होंने बोला था कि सरकार बदलेगी बदलती रहेगी लेकिन लोकतंत्र बचा रहना चाहिए। मेरे देश का कानून , संविधान बयानों और भीड़ के अनुसार नहीं चल सकता। संविधान में लिखी हुई प्रस्तावना हर बहस का मूल होना चाहिए। क्या इसकी मांग करना अनुचित है ?


No comments:

Post a Comment

मौलवी साहब

पहले घर की दालान से शिव मंदिर दिखता था आहिस्ता आहिस्ता साल दर साल रंग बिरंगे पत्थरों ने घेर लिया मेरी आँख और शिव मंदिर के बिच के फासले क...