Monday 25 January 2016

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाए

निराश नहीं है , दुखी अवश्य है। गणतंत्र में मेरी आवाज तब तक सुरक्षित नहीं है जब तक वो किसी एक विचारधारा के सुर में सुर ना मिलाती  हो। भीड़ चाहिए हर वाक्य के समर्थन में , किताबे जला दी जाएंगी , फिल्मो का हिंसक विरोध होगा , बयानबाजी पे बयानबाजी लेकिन मूल समस्या पे कोई ठोस कदम नहीं।  मेरे खाने - पीने और कपडे पहनने के ढंग से लोग तय करेंगे की मै कितना बड़ा देशभक्त हुं। गणतंत्र दिवस की शुभकामनाए , लेकिन ना जाने क्युं आज सुबह से ही धूमिल की कुछ पंक्तिया बार - बार ज़ेहन में आ रही है 

क्या आज़ादी सिर्फ़ तीन थके हुए रंगों का नाम है
जिन्हें एक पहिया ढोता है
या इसका कोई खास मतलब होता है?

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