Wednesday 6 May 2015

देश की आर्थिक उन्नती पे लेख

सवाल बहुत आसान था
देश की आर्थिक उन्नती पे लेख लिखे
अर्थ के अर्थ को
अलग-अलग सांचे मे ढाला गया
पाश कालोनी का स्कुल था ,
लेख मे मोबाईल से ले के
गगनचुंबी इमारतो को
बखुबी शब्दो के सुनहरे चादर मे
लपेट के परोसा गया
ध्यान व्याकरणो के सारे नियम
ऑर अलंकारो पे था
आखिरकार मास्टर जी के पॅमानो पे
खडा जो उतरना था
वही सवाल सुदुर क़िसी गाव के
बच्चे के हथ्थे चढा
लंबी खामोशी ..
खुद को देश से
ऑर देश को उन्नति से
जोडने के प्रयास मे उसका
वक्त नही पुरा बचपन बीत गया
कभी लिखता जय जवान जय किसान
तो परोसी मंगलु चाचा की लाश
जो कुंए मे मिली थी जेहन मे आ जाती
हा देखा था सडको को बनते बिगडते
फिर बनते ..
कोसता था अपने ही बाबुजी को
मनरेगा के
द्वारा सडक के निर्माण कार्य मे
उनका भी हाथ था
इसी उधेडबुन मे
समय समाप्ति की घोषना ..
अब सपनो के महल बनाने के लिये मॉका अगले साल
किसको कितने अंक आए ..
जवाब कल के अखबार मे











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