Monday 27 April 2015

धुंए की जात

घर मे अंगीठी से निकलता धुंआ ,
वहा किसी के जलते घर से ...
धुंए की भी जात हॅ क्या
मेरे सिगरेट से निकलता हुआ ,
टेम्पो वाले कि बीडी से ..
मुझे क्यो अलग अलग लग रहा हॅ
मॅने अपने ऑर उसके बीच की
सारी दुरिया धुंए से भाप ली
ईट की भट्टी का धुआ
ऑर कारखाने का धुआ
मुझे मार्क्सवाद से साम्यवाद
से समाजवाद तक घुमा लाया
ऑर साथ मे ये भी सिखाया
पसीने की भी जात होती हॅ
धुंआ मीर की बेबसी का
समीर का धुंआ-धुंआ
सदियो का सफर या
क्रमविकास का सिद्धान्त
पता नही जब मॅ
धुआ बन उड जाउंगा
मेरा धुंआ क्या कह रहा होगा

No comments:

Post a Comment

मौलवी साहब

पहले घर की दालान से शिव मंदिर दिखता था आहिस्ता आहिस्ता साल दर साल रंग बिरंगे पत्थरों ने घेर लिया मेरी आँख और शिव मंदिर के बिच के फासले क...