Thursday 9 March 2017

कायस्थ समाज :भाजपा का पारम्परिक वोट बैंक (एक अतिवादी का पोस्ट)

इस पोस्ट को लिखने के बाद हो सकता है चित्रांश समिति मुझे किसी भी समारोह में ना बुलाए लेकिन मुझपर ना बुलाने का फर्क उतना ही पडेगा जितना चित्रांश समिति का कायस्थ समाज पे पड़ता है l जैसा की मैंने लिखा है, कायस्थ समाज भाजपा का पारम्परिक वोट बैंक है , चाहे उम्मीदवार कोई भी हो ट्रैक रिकार्ड कैसा भी हो, बटन कमल पर ही दबता हैl ये पोस्ट और भी जातियो के लिए हो सकती है लेकिन कायस्थ समाज जो अपने आप को सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा और जिम्मेदार वर्ग समझने का दम्भ पालता है उसको ये आइना दिखाना तो बनाता ही है क्योकि जिस प्रकार के उम्मीदवार भाजपा लगातार मैदान में उतार रही है और उसे इस समाज का समर्थन भी मिल रहा है उससे ये लगता है कि बुद्धिजीवी होने का जो दम्भ है वो केवल दम्भ ही हैl अब इसके कारण क्या हो सकते है? ब्राह्मणवाद अगर नष्ट हो जाएगा तो उसका फर्क सीधे तौर पे इस समाज को पडेगा क्योकि यह समाज उत्पत्ति से ही ब्राह्मणवाद और सामन्तवादी प्रथाओ का समर्थक रहा है और इसमे कोई दो राय नहीं है कि भाजपा इन दोनों विचारधाराओ को सहेजने वाली आखिरी पार्टी हैl दूसरा कारण कमजोर नेतृत्व का भी हो सकता है और उन्हें अपनी छवि और पैठ बचाने वाले सिर्फ भाजपाई ही दिखाई देते है जो सर्विस क्लास के हको के पक्षधर है या दिखाई देते हैl मझे इसमे कोई परेशानी नहीं है कि पूरी जाती केवल भाजपा को वोट दे, मुझे परेशानी उन तमगो से है जिन्हें ढोते हुए वो ये वोट देते हैl उप्र में कायस्थ वोट लगभग 3 प्रतिशत है जो एकतरफा मतदान भाजपा की और करता है और प्रचार करता है अपनी तथाकथित बौद्धिकता के बल पर कि फलां लोग एकजुट होकर मतदान करते हैl अगर ये गणित केवल हारने और जितने के लिए ही लगाईं जाती है तो एक जाती जो शिक्षा और उसके प्रचार प्रसार में अग्रणी रही है का ऐसा करना मूर्खतापूर्ण कदम है lउम्मीद है कायस्थ समाज केवल दुसरो पे जाती वदी होने का आरोप ना लगाए और अपने अंदर झाँक के उस धरोहर को टटोले जिसके कारण उन्हें पहचान मिली है l

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