खामोशी कह रही है कान में क्या
आ रही हो मेरे गुमान में क्या
अब मुझे कोई टोकता भी नहीं
यही होता है खानदान में क्या
बोलते क्यों नहीं मेरे हक़ में
आबले पड़ गए जबान में क्या
मेरी हर बात बे-असर ही रही
नुक्स है कुछ मेरे बयान में क्या
वो मिले तो ये पूछना है मुझे
अब भी हुँ मई तेरी अमान में क्या
शाम ही से दूकान-ए-दीद है बंद
नहीं नुक्सान तक दूकान में क्या
यूं जो तकता है आसमां को तू
कोई रहता है आसमान में क्या
ये मुझे चैन क्यों नहीं पडता
एक ही शख्स था जहां में क्या
- जॉन एलिया
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