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Monday, 13 October 2014

उडने को आसमान बहुत है ,


उडने को आसमान बहुत है ,
मेरे लिये ये मकान बहुत है

आओ प्यार से मिल ले दोनो ,
लडने को दुनिया जहान बहुत है

चार पहिये की नही चारपाई की ,
जीने को ईतना सामान बहुत है

आसमान की ओर भी नही देखता
मुझपे तु है मेहरबान बहुत है

बेवफाई ,रंजो-गम, गीले शिकवे
सफर मे ईतनी थकान बहुत है


- Saurav Kumar Sinha

मौलवी साहब

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