उडने को आसमान बहुत है ,
मेरे लिये ये मकान बहुत है
आओ प्यार से मिल ले दोनो ,
लडने को दुनिया जहान बहुत है
चार पहिये की नही चारपाई की ,
जीने को ईतना सामान बहुत है
आसमान की ओर भी नही देखता
मुझपे तु है मेहरबान बहुत है
बेवफाई ,रंजो-गम, गीले शिकवे
सफर मे ईतनी थकान बहुत है
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Saurav Kumar Sinha
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