Thursday, 16 October 2014

गुहारे रोज आती है सतलज के किनारो से

गुहारे रोज आती है सतलज के किनारो से
हमे फुर्सत नही मिलती राशन की कतारो से

अच्छे दिन की आहट कब मेरे गांव मे पहुंचेगी  ,
चलो पुछ लेते है मुल्क के ठेकेदारो से

वही चर्चा मे थी शब भर कल कहकहो के बीच
जो बाते बोल आया था मॅ अपने राजदारो से

मिट्टी सबके साथ एक सा सलुक करती है
यही आवाजे आती है उजडी हुई मजारो से

'कुमार' फिक्र अपनी आज भी तुमको ना रहती है
कोई ये बात कहता था कभी अपने ई्शारो से

- Saurav Kumar Sinha

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