खाली थाली पर चार जोड़ी निगाहें ,
चूल्हे पे पकता अर्थव्यवस्था को सारांश
थाली पे पड़ी रोटी की पहली थाप
और एक ग़ज़ल हो गई
चूल्हे पे पकता अर्थव्यवस्था को सारांश
थाली पे पड़ी रोटी की पहली थाप
और एक ग़ज़ल हो गई
पहले घर की दालान से शिव मंदिर दिखता था आहिस्ता आहिस्ता साल दर साल रंग बिरंगे पत्थरों ने घेर लिया मेरी आँख और शिव मंदिर के बिच के फासले क...
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