कहते थे तुम की , नाउम्मीदी बहुत है
माथे पे ठहरा ये शिकन बहुत है
गुमसुम है आवाजे , रोशनाई पे है पहरा
राहील की सदा भी मद्धम बहुत है
मेरी ये निशानी , उसकी ये कहानी
उसका वो है मतलब , है सालो पुरानी
हम तय तो कर ले ,ये फासले दिल के
झगड़ा ये अपना आसान बहुत है
वो बंद किताबे , उलझे से रिसाले
हर सफ़हा है दहशत , अब कौंन संभाले
हर गम में मेरा गम, दिख जाता है कातिल
ये गम की कहानी गुमनाम बहुत है
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