Friday, 26 February 2016

सबसे अच्छा होता है वक्त का मरहम

सबसे अच्छा होता है
वक्त का मरहम।
जो परत दर परत
यादो पे
नए गम की परत
बिना पूछे चढ़ाता रहता है।
बिना पूछे इस लिए,
वो मरहम की असंख्य
परतो के नीचे दबा हुआ
वो पुराना जो अब
अनकहा हो चुका है
ग़ुम हो जाता है।
कुरेदने पे दर्द तो होता है
लेकिन वो नहीं मिलता
जिसकी तलाश होती है
हां छिल जाता है पूरा
मेरा नया अस्तित्व भी
लहू लुहान हो जाती है
उसके ऊपर की सारी परते
और सड़ने लगता है
वर्तमान।  
लेकिन कुरेदने की तो आदत है
अब उस सड़न की आदत
हो गई है।


Thursday, 18 February 2016

जिसका जवाब तय है

जिसका जवाब तय है
सत्यापित है
सर्वसम्मति से
लोकतंत्र में पारित है
उसका सवाल क्या है ?
ये सवाल उनसे जो
सवाल और  जवाब दोनों
तय करते है , लोकतंत्र में।
मेरा सवाल क्या है ?
मेरा सवाल है ,
जवाब कौन तय करेगा
और मेरे जवाब कौन
सत्यापित करेगा ?

Monday, 15 February 2016

रंग तो सात होते है

रंग तो सात होते है
सब की अपनी अपनी पहचान
अपना अस्तित्व।
लेकिन यहाँ तो रंग तीन ही है
तीन रंग जिनको
साथ में सिला गया है
उम्मीद के धागे से।
लगाए गए है पहिये
ताकि वो चलते रहे
सभ्यता की निशानी की तरह
" चरैवेति - चरैवेति " का संदेश देते रहे
फिर बाकी रंगो का क्या ?
हां , समझाया गया था उनको
मिल जाओ इन्ही तीन रंगो में
चलते रहो क्योकि तीनो रंगो ने
साथ सदेव चलने की कसम खाई है
अपना अस्तित्व उन्ही
तीन रंगो में देखो
ठीक है , बाकी रंगो ने कहा
लेकिन एक सवाल
हम क्या करेंगे अगर
वो तीन रंग जिन्होंने
साथ चलने की
सबको  साथ ले चलने की
कसम खाई है
कैची ले कर
धागो को काटे
और फैसला करे
अलग अलग चलने का ?
कुछ निम्न वर्ग के रंगो ने कहा
हम कुछ रंग , बदरंग सही
साथ मिल कर
उम्मीद के धागो से
आपस में जुड़ेंगे
लेकिन फिर तुम लोगो ने भी
कैची उठाई तो ?
एक और बदरंग ने पूछा





Sunday, 14 February 2016

पाश' की कविता - भारत

माहौल तो अनुकूल नहीं है 'पाश' की कविता साझा करने का लेकिन जब राष्ट्रीयता का सर्टिफिकेट राजनैतिक दाल बांटने लगे और राष्ट्रवादी होने का पैमाना सिर्फ एक रह जाए की आप निज़ाम सुर में सुर मिलाए , तो ये स्थिति केवल भयावाह ही नहीं अपितु अत्यंत विचारणीय भी है। आप मार्क्सवादी हो या समाजवादी या दक्षिणपंथी या किसी और विचारधारा के समर्थक , विचारो की लड़ाई में जीत हार विचार की हीं होगी और उसमे अस्त्र भी विचार ही होंगे। किसी ने कहा भी है - An Arrow in the Blue

आरोप प्रत्यारोप से पहले अपनी विचारधारा का गहन अध्यन करे , उसकी बीज अगर नफ़रत की जमीन पे बोई गई थी तो कम से कम भारत में उस विचारधारा का बहुत दिन तक टिकना मुश्किल है , हम क्षणिक हिंसक हो सकते है लेकिन स्वभाव से हम बहुत उदारवादी और मध्यम मार्गी है।

भारत --
मेरे सम्मान का सबसे महान शब्द
जहाँ कहीं भी प्रयोग किया जाए
बाक़ी सभी शब्द अर्थहीन हो जाते है

इस शब्द के अर्थ
खेतों के उन बेटों में है
जो आज भी वृक्षों की परछाइओं से
वक़्त मापते है
उनके पास, सिवाय पेट के, कोई समस्या नहीं
और वह भूख लगने पर
अपने अंग भी चबा सकते है
उनके लिए ज़िन्दगी एक परम्परा है
और मौत के अर्थ है मुक्ति
जब भी कोई समूचे भारत की
'राष्ट्रीय एकता' की बात करता है
तो मेरा दिल चाहता है --
उसकी टोपी हवा में उछाल दूँ
उसे बताऊँ
के भारत के अर्थ
किसी दुष्यन्त से सम्बन्धित नहीं
वरन खेत में दायर है
जहाँ अन्न उगता है
जहाँ सेंध लगती है

Saturday, 6 February 2016

कहते थे तुम की , नाउम्मीदी बहुत है

कहते थे तुम की , नाउम्मीदी  बहुत है 
माथे पे ठहरा ये शिकन बहुत है 
गुमसुम है आवाजे , रोशनाई पे है पहरा 
राहील की सदा भी  मद्धम बहुत  है 

मेरी ये निशानी , उसकी ये कहानी 
उसका वो है मतलब , है सालो पुरानी 
हम तय तो कर ले ,ये फासले दिल के 
झगड़ा ये अपना आसान बहुत है 

वो बंद किताबे , उलझे से रिसाले 
हर सफ़हा है दहशत , अब कौंन संभाले 
हर गम में मेरा गम, दिख जाता है कातिल 
ये गम की कहानी गुमनाम बहुत है 




Tuesday, 2 February 2016

एक शब्द से कविता

कह तो दिया ,
यही  सच है।
अब,
अब क्या सफाई दुं
शब्द को सच बनाने में
भाव ही तो मौन है
शब्द तो पुरे है ,
नपे-तुले
जरुरत के हिसाब से
वक़्त की नजर से
भाषा की नजर से
भाव ,
भाव का क्या है
नकाब ही तो है
जो
जरुरत के हिसाब से
वक़्त की नजर से
भाषा की नजर से
हम पहनते ,
बदलते रहते है 
- Saurav Kumar Sinha

मौलवी साहब

पहले घर की दालान से शिव मंदिर दिखता था आहिस्ता आहिस्ता साल दर साल रंग बिरंगे पत्थरों ने घेर लिया मेरी आँख और शिव मंदिर के बिच के फासले क...