अपने खत
खुद
को
ही
कहे
जाते
हॅ
,
ऑर अकेले
ही
याद-ए-माजी़
मे
रह
जाते
हॅ
घर पहुचता
हॅ
रोज
कोई
मेरे
जॅसा
ऑर हम
रास्ते
मे
कही
रह
जाते
हॅ
तुम्हारा छोडो
उन
यारो
पे
हॅरत
हॅ
जो तुम्हारे
हक़
मे
गवाही
दे
जाते
हॅ
उनको हक
भी
नही
समंदर
पे
सवालो
का
जो मुसाफिर
किनारो
पे
कही
रह
जाते
हॅ
छप गई
गजले
रिसालो
मे
अदिबो
के
हम अपने
शेर
मे
मुकम्मल
हो
जाते
हॅ
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